IPC, CrPC और IEA को किसने रिप्लेस किया ?

Rishabh Swami
July 03, 2024
IPC, CrPC और IEA को किसने रिप्लेस किया ?

IPC, CrPC और IEA को किसने रिप्लेस किया? | क्या हैं BNS, BNSS, BSA जो लेंगे IPC, CrPC, IEA की जगह।  What are BNS, BNSS, BSA which will replace IPC, CrPC, IEA

01 जुलाई 2024 की रात 12 बजे से पुरे देश में ये कानून लागू हो गये हैं। भारतीय दंड संहिता की जगह भारतीय न्याय संहिता (B.N.S) लेगा, 51 साल पुराने सीआरपीसी की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (B.N.S.S) लेगी और इंडियन एविडेंस एक्ट की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम (B.S.A) के प्रावधान लागू होंगे

इस कानून के बनने से महिलाओं से जुड़े ज्यादातर अपराधों में पहले से ज्यादा सजा मिलेगी, इलेक्ट्रॉनिक सूचना से भी FIR दर्ज हो सकेगी, कम्युनिटी सेवा जैसे प्रावधान भी लागू होंगे।

जानिए और क्या खास है इस कानून में

  •  एक जुलाई से नए कानून के तहत FIR दर्ज हो रही है और इसी के अनुसार जांच से लेकर ट्रायल पूरा होगा।      
  • एक जुलाई से पहले दर्ज हुए मामलों में नए कानून का असर नहीं होगा. यानी जो केस 1 जुलाई 2024 से पहले दर्ज हुए हैं, उनकी जांच से लेकर ट्रायल तक पुराने कानून का हिस्सा होंगी।
  • भारतीय न्याय संहिता में कुल 357 धाराएं हैं, अब तक आईपीसी में 511 धाराएं थीं। 
  • B.N.S.S में कुल 531 धाराएं हैं। इसके 177 प्रावधानों में संशोधन किया गया है, जबकि 14 धाराओं को हटा दिया गया है। 9 नई धाराएं और 39 उप धाराएं जोड़ी गई हैं। पहले Cr.P.C में 484 धाराएं थीं। 
  • इसी तरह भारतीय साक्ष्य अधिनियम में कुल 170 धाराएं हैं। नए कानून में 6 धाराओं को हटाया गया है, 2 नई धाराएं और 6 उप धाराएं जोड़ी गई हैं। पहले इंडियन एविडेंस एक्ट में कुल 167 धाराएं थीं। 
  • कोई भी नागरिक अपराध के सिलसिले में कहीं भी जीरो FIR दर्ज करा सकेगा। जांच के लिए मामले को संबंधित थाने में भेजा जाएगा अगर जीरो FIR ऐसे अपराध से जुड़ी है, जिसमें तीन से सात साल तक सजा का प्रावधान है तो फॉरेंसिक टीम से साक्ष्यों की जांच करवानी होगी। 
  • नए कानून में ऑडियो-वीडियो यानी इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य पर जोर दिया गया है। फॉरेंसिंक जांच को अहमियत दी गई है। 
  • अब ई-सूचना से भी FIR दर्ज हो सकेगी। हत्या, लूट या रेप जैसी गंभीर धाराओं में भी    E- FIR हो सकेगी। वॉइस रिकॉर्डिंग से भी पुलिस को सूचना दे सकेंगे। E-FIR के मामले में फरियादी को तीन दिन के भीतर थाने पहुंचकर FIR की कॉपी पर साइन करना जरूरी होगा।
  • FIR के 90 दिन के भीतर चार्जशीट दाखिल करनी जरूरी होगी। चार्जशीट दाखिल होने के 60 दिनों के भीतर कोर्ट को आरोप तय करने होंगे।
  • मामले की सुनवाई पूरी होने के 30 दिन के भीतर जजमेंट यानी फैसला देना होगा। जजमेंट दिए जाने के बाद 7 दिनों के भीतर उसकी कॉपी मुहैया करानी होगी।
  • पुलिस को हिरासत में लिए गए शख्स के बारे में उसके परिवार को लिखित में बताना होगा। ऑफलाइन और ऑनलाइन भी सूचना देनी होगी।
  • 12 साल से कम उम्र की पीड़िता के साथ रेप पर अपराधी को न्यूनतम 20 साल की सजा, आजीवन कारावास या मृत्युदंड का प्रावधान है। शादी का झांसा देकर संबंध बनानेवाले अपराध को रेप से अलग अपराध माना गया है यानी उसे रेप की परिभाषा में नहीं रखा गया है
  • धारा 65 के तहत 16 साल से कम आयु की पीड़िता से दुष्कर्म किए जाने पर 20 साल का कठोर कारावास, उम्रकैद और जुर्माने का प्रावधान है। गैंगरेप में पीड़िता यदि वयस्क है तो अपराधी को आजीवन कारावास का प्रावधान है।
  • गवाहों की सुरक्षा के लिए भी प्रावधान है। तमाम इलेक्ट्रॉनिक सबूत भी कागजी रिकॉर्ड की तरह कोर्ट में मान्य होंगे।
  • मॉब लिंचिंग भी अपराध के दायरे में आ गया है। शरीर पर चोट पहुंचाने वाले अपराधों को धारा 100-146 तक बताया गया है। हत्या के मामले में धारा 103 के तहत केस दर्ज किया जायेगा।

छोटे-मोटे अपराधों के लिए गिरफ्तार किए गए लोगों को सजा के तौर पर सामुदायिक सेवा करनी होगी। संशोधित नए कानून में आत्महत्या का प्रयास, लोक सेवकों द्वारा अवैध व्यापार, छोटी-मोटी चोरी, सार्वजनिक नशा और मानहानि जैसे मामलों में सामुदायिक सेवा के प्रावधान शामिल हैं। सामुदायिक सेवा अपराधियों को सुधरने का मौका देती है, जबकि जेल की सजा उन्हें कठोर अपराधी बना सकती है। अदालतें पहले भी अपराध करने वाले या छोटे अपराध करने वालों को सामुदायिक सेवा की सजा देती रही हैं, लेकिन अब यह एक स्थायी कानून बन गया है। नए कानून के तहत पहली बार ऐसा प्रावधान किया गया है जिसमें नशे की हालत में उपद्रव मचाने या 5,000 रुपये से कम की संपत्ति की चोरी जैसे छोटे अपराधों के लिए सामुदायिक सेवा को दंड के तौर पर माना गया है।

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