विकासशील भारत होने के नाते भारत को जरूरी है कि भारत अपने विकाशील होने दावे को पुख्ता करे, इसी सिलसिले में भारत ने हाइपरलूप प्रोजेक्ट पर अपनी कमर कसी हुई है।
IIT मद्रास के कुछ क्षत्रों द्वारा इस प्रोजेक्ट की शुरुआत हाल ही के वर्षों में हुई।
आईआईटी मद्रास ने अपने डिस्कवरी कैंपस में हाइपरलूप के लिए एक टेस्ट ट्रैक का निर्माण किया। दिसंबर 2024 तक, उन्होंने 422 मीटर लंबा टेस्ट ट्रैक विकसित कर लिया था, जिसे एशिया का सबसे लंबा छात्र-संचालित हाइपरलूप परीक्षण ट्रैक बताया गया है। वर्तमान में, इस ट्रैक की लंबाई 410 मीटर है और इसे जल्द ही 50 मीटर और बढ़ाकर दुनिया का सबसे लंबा ट्रैक बनाने की योजना है।
भारत सरकार के रेलवे मंत्रालय ने इस परियोजना की क्षमता को देखते हुए आईआईटी मद्रास को वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान की। मई 2022 में, रेलवे मंत्रालय ने आईआईटी मद्रास को स्वदेशी हाइपरलूप प्रौद्योगिकी के विकास और सत्यापन के लिए 8.34 करोड़ रुपये का अनुदान आवंटित किया।
आईआईटी मद्रास में इनक्यूबेट किए गए डीप-टेक स्टार्टअप ट्यूटर हाइपरलूप ने भी इस परियोजना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और भारत का पहला वाणिज्यिक इरादे वाला हाइपरलूप पॉड रन आयोजित किया है। यह स्टार्टअप भारतीय रेलवे के साथ मिलकर इस तकनीक को आगे बढ़ाने के लिए काम कर रहा है।
हाइपरलूप परियोजना के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स घटक प्रौद्योगिकी का विकास चेन्नई के इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (आईसीएफ) में किया जा रहा है। आईसीएफ के उच्च कुशल विशेषज्ञ, जिन्होंने वंदे भारत हाई-स्पीड ट्रेनों के लिए बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम सफलतापूर्वक विकसित किए हैं, अब इस परियोजना के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स प्रौद्योगिकी का विकास करेंगे।
यह तो रही भारत में हाईपरलूप की शुरुआत, उस पर स्टार्टअप्स का सहयोग और भारत सरकार की उत्सुकता की।
मगर दुनिया में भारत अकेला ऐसा देश नहीं है जहां इस टेक को टेस्ट किया जा रहा है-
हाइपरलूप परिवहन पर दुनिया का नज़रिया उत्साह, सतर्क आशावाद और इसमें शामिल चुनौतियों के बारे में बढ़ती वास्तविकता का मिश्रण है। यहाँ वैश्विक दृष्टिकोण का विश्लेषण दिया गया है-
सऊदी अरब ने भी इस तकनीक में रुचि दिखाई थी।
संयुक्त राज्य अमेरिका, जहाँ एलोन मस्क ने पहली बार इस अवधारणा का प्रस्ताव रखा था, ने हाइपरलूप वन (पूर्व में वर्जिन हाइपरलूप) और हाइपरलूप ट्रांसपोर्टेशन टेक्नोलॉजीज (HTT) जैसी कंपनियों के साथ महत्वपूर्ण शुरुआती गतिविधि देखी। हालाँकि, वित्तीय चुनौतियों और वाणिज्यिक अनुबंधों की कमी के कारण हाइपरलूप वन ने 2023 के अंत में परिचालन बंद कर दिया, जिससे प्रौद्योगिकी को वास्तविकता में लाने में आने वाली कठिनाइयाँ उजागर हुईं।
HTT इटली में एक लाइन के लिए व्यवहार्यता अध्ययन सहित परियोजनाओं को जारी रखे हुए है।
एलोन मस्क द्वारा स्थापित द बोरिंग कंपनी ने यात्री यात्रा के लिए मूल हाइपरलूप अवधारणा के बजाय कम गति पर इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए सुरंग निर्माण पर अधिक ध्यान केंद्रित किया है।
कनाडा की ट्रांसपॉड ने कैलगरी और एडमोंटन को जोड़ने के उद्देश्य से अपनी "फ्लक्सजेट" परियोजना का अनावरण किया है और कथित तौर पर परीक्षण ट्रैक विकास की योजना बना रही है।
कई यूरोपीय स्टार्टअप और अनुसंधान संस्थान सक्रिय रूप से शामिल हैं।
जर्मनी में टीयूएम हाइपरलूप ने यात्रियों के लिए एक पूर्ण पैमाने का परीक्षण खंड बनाया है और एक लंबा परीक्षण ट्रैक विकसित कर रहा है। उन्होंने 2023 में यूरोप में पहली यात्री यात्रा हासिल की।
नीदरलैंड में हाइपरलूप एक बड़ी परीक्षण सुविधा संचालित करता है जो वक्रों को पार करने और मार्गों को बदलने जैसी तकनीकों पर केंद्रित है, जो अन्य डेवलपर्स के उपयोग के लिए उपलब्ध है।
स्पेन में ज़ेलेरोस हाइपरलूप ने शुरू में हाइपरलूप विकास पर ध्यान केंद्रित किया, लेकिन फंडिंग चुनौतियों के कारण अपना ध्यान इलेक्ट्रिक मोबिलिटी पर स्थानांतरित कर दिया है। यह वित्तीय बाधाओं के बारे में बढ़ती जागरूकता का संकेत देता है।
पोलैंड में नेवोमो एक हाइब्रिड समाधान पर काम कर रहा है जो हाइपरलूप वैक्यूम ट्यूब तकनीक को चुंबकीय उत्तोलन के साथ जोड़ता है, जो मौजूदा रेलवे लाइनों के साथ भी संगत है।
नीदरलैंड में यूरोपीय हाइपरलूप सेंटर विभिन्न यूरोपीय पहलों के लिए एक परीक्षण मैदान के रूप में कार्य करता है।
भारत विशेष रूप से आईआईटी मद्रास के माध्यम से मजबूत सरकारी समर्थन और शैक्षणिक भागीदारी का प्रदर्शन कर रहा है, जिसने एशिया की सबसे लंबी हाइपरलूप परीक्षण सुविधा विकसित की है। ध्यान स्वदेशी प्रौद्योगिकी विकास पर है।
चीन भी हाइपरलूप प्रौद्योगिकी का पता लगा रहा है, कम वैक्यूम स्तरों पर सफल परीक्षणों की कुछ रिपोर्टें हैं। उनका दृष्टिकोण इस स्तर पर अधिक शोध-उन्मुख प्रतीत होता है।
यूएई व्यवहार्यता अध्ययन और साझेदारी सहित शुरुआती अपनाने वालों में से एक था, जिसमें कार्गो अनुप्रयोगों के लिए डीपी वर्ल्ड के साथ हाइपरलूप वन का सहयोग भी शामिल था। हालाँकि, ठोस परियोजनाएँ धीमी गति से साकार हुई हैं।
हाइपरलूप एक प्रस्तावित उच्च-गति परिवहन प्रणाली है जिसमें पॉड्स (एक प्रकार का कैप्सूल या वाहन) एक कम दबाव वाली ट्यूब के भीतर बहुत तेज गति से यात्रा करते हैं। इस अवधारणा को 2013 में उद्यमी एलोन मस्क ने एक श्वेत पत्र में प्रस्तुत किया था।
हाइपरलूप प्रणाली के तीन मुख्य तत्व हैं:
हाइपरलूप का लक्ष्य पारंपरिक परिवहन विधियों की तुलना में बहुत तेज गति प्राप्त करना है, सैद्धांतिक रूप से 1,200 किलोमीटर प्रति घंटे (760 मील प्रति घंटे) तक। यह चुंबकीय उत्तोलन (मैग्लेव) के सिद्धांत पर आधारित है, जहाँ पॉड्स चुंबकीय शक्ति का उपयोग करके ट्रैक के ऊपर तैरते हैं और रैखिक इलेक्ट्रिक मोटरों द्वारा आगे बढ़ते हैं।
सब इसकी ओर क्यों अग्रसर हैं?
कई कारणों से दुनिया भर के देश और कंपनियां हाइपरलूप प्रौद्योगिकी में रुचि दिखा रहे हैं:
हालांकि हाइपरलूप में महत्वपूर्ण चुनौतियां भी हैं, जैसे उच्च बुनियादी ढांचा लागत, तकनीकी जटिलताएँ और सुरक्षा संबंधी चिंताएँ, इसकी संभावित क्षमता इसे भविष्य के परिवहन के लिए एक आकर्षक विकल्प बनाती है। यही कारण है कि कई देश और कंपनियां इस तकनीक के अनुसंधान और विकास में निवेश कर रहे हैं। ⏹